Thursday, April 2, 2020

श्वेत रक्त


देखा था तुमको मैंने 

धूप में तपते हुए

दौड़ते हुए गर्म रेत में और ना थकते हुए

सूरज से लड़ते हुए पसीना टपकते हुए और पानी की तरफ देखकर हंसते हुए

देखा था मैंने तुमको धूप में तपते हुए


घड़ी की सुई से तेज तुम्हारे कदमों को थिरकते हुए

सुना था तुम्हारी धड़कनों को प्रेम की अग्नि से तेज धड़कते हुए

देखा था मैंने तुम्हें ,जब सब सोते थे तब पसीना बहाते हुए।

देखा था मैंने तुम्हें सूरज से लड़ते हुए धूप में तपते हुए 


औरों की आंखों में जहां नींद होती थी देखा था मैंने तुम्हारी आंखों में सपनों को सजते हुए

उन सपनों को पाने के लिए अथक परिश्रम करते हुए

लड़ते हुए इस जहां से, हजारों मुख चुप करते हुए

देखा था मैंने तुम्हें अपने सपनों की ओर बढ़ते हुए।


सांसों में संयम था, उस अद्भुत कोलाहल के बीच में भी

देखा था मैंने तुम्हारी सांसों को रुक कर, भविष्य की कल्पना करते हुए

तुम्हारे कदम बढ़ चले थे एक नए युग की  रचना करते हुए।

देखा था मैंने तुम्हें धूप में तपते हुए सूरज से लड़ते हुए।



Subhash..

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