देखा था तुमको मैंने
धूप में तपते हुए
दौड़ते हुए गर्म रेत में और ना थकते हुए
सूरज से लड़ते हुए पसीना टपकते हुए और पानी की तरफ देखकर हंसते हुए
देखा था मैंने तुमको धूप में तपते हुए
घड़ी की सुई से तेज तुम्हारे कदमों को थिरकते हुए
सुना था तुम्हारी धड़कनों को प्रेम की अग्नि से तेज धड़कते हुए
देखा था मैंने तुम्हें ,जब सब सोते थे तब पसीना बहाते हुए।
देखा था मैंने तुम्हें सूरज से लड़ते हुए धूप में तपते हुए
औरों की आंखों में जहां नींद होती थी देखा था मैंने तुम्हारी आंखों में सपनों को सजते हुए
उन सपनों को पाने के लिए अथक परिश्रम करते हुए
लड़ते हुए इस जहां से, हजारों मुख चुप करते हुए
देखा था मैंने तुम्हें अपने सपनों की ओर बढ़ते हुए।
सांसों में संयम था, उस अद्भुत कोलाहल के बीच में भी
देखा था मैंने तुम्हारी सांसों को रुक कर, भविष्य की कल्पना करते हुए
तुम्हारे कदम बढ़ चले थे एक नए युग की रचना करते हुए।
देखा था मैंने तुम्हें धूप में तपते हुए सूरज से लड़ते हुए।
Subhash..
Beautiful 👍
ReplyDelete