कालिदास का विश्व प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शकुंतलम तो आपने कहीं ना कहीं पढ़ा या सुना तो जरूर होगा। इस नाटक में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत, श्री करणी ऋषि के आश्रम में उनके दर्शन की अभिलाषा से जाते हैं। लेकिन वहां उन्हें कड़वे ऋषि की पुत्री शकुंतला मिलती है जिससे उन्हें प्रेम हो जाता है। दोनों के विवाह से भरत नाम का बालक जन्म लेता है जो संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त कर लेता है। बाद में उन्हीं के नाम से इस भारत भूमि को भारतवर्ष के नाम से जाना गया। राजा भरत के 9 पुत्र थे लेकिन जब उनके सामने उनमें से किसी एक को युवराज चुनने का प्रश्न आया तब उन्होंने यह पाया कि उनके दो पुत्रों में से एक भी युवराज बनने के योग्य नहीं है। तब उन्होंने अपनी प्रजा में से एक योग्य व्यक्ति बामण न्यू को हस्तिनापुर का राजा बनाने का निर्णय लिया। और यहीं से भारतवर्ष के गौरव की कहानी प्रजातंत्र की शुरुआत होती है। इसकेेेेे बाद से ही हस्तिनापुर का राजा वंंश के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर राजा द्वारा मनोनीत किया जाता था।
राजा शांतनु में भी हस्तिनापुर के एक प्रतापी राजा थे, इन्हें गंगा नदी के किनारे एक दिन स्वयं गंगा एक स्त्री रूप में मिली थी पश्चात दोनों ने विवाह किया एवं नंगा को शांतनु से 7 पुत्र हुए इन सातों पुत्रों को गंगा ने नदी में बहा दिया एवं जब आठवें पुत्र को नदी में बहाने जा रही थी तभी शांतनु ने उन्हें रोक दिया। ऐसा करने पर गंगा उन्हें छोड़ कर चली गई। शांतनु के आठवें पुत्र का नाम देवव्रत था जो आगे चलकर भीष्म के नाम से जाने गए।
स्वार्थ सर्वथा यदि वर्तमान में नहीं तो भविष्य में चढ़कर दुख का कारण बनता है। जब शांतनु को पुनः देशराज की पुत्री सत्यवती से प्रेम हुआ एवं शांतनु देशराज के पास सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव लेकर गए तब उन्होंने यह शर्त रखी कि हस्तिनापुर की राजगद्दी पर मेरी पुत्री का प्रथम बालक की बैठेगा। जबकि इसके पहले शांतनु देवव्रत को राजा बनाने की घोषणा कर चुके थे अतः शांतनु कुल की गणतंत्र की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए दुखी मन से वापस आ गए। लेकिन उनके दुख को देवव्रत समझ गए एवं देशराज के पास जाकर यह प्रतिज्ञा की की मैं जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा एवं राजगद्दी अपनी माता सत्यवती के पुत्रों को दे दूंगा। ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा के बाद से ही देवव्रत भीष्म के नाम से जानें गए
महाराज शांतनु ने सत्यवती से विवाह तो कर लिया लेकिन वह संपूर्ण जीवन इस बात का प्रचार करते रहे कि उनकी प्रेम अग्नि में भीष्म का संपूर्ण जीवन चल गया। उन्होंने हमेशा यह माना की उनके प्रेम ने नीति की अवहेलना की जिससे भरत वंश की गणतंत्र राज्य की परंपरा आज टूट रही है साथ ही भीष्म को एक कठोर नीरज जीवन भी उन्हीं के कारण मिला है। सत्यवती को भी जीवन भर यह दुख रहा की उनका पुत्र भीष्म उनकी खुशी के लिए अपना संपूर्ण जीवन प्रतिज्ञा की बेदी में अर्पित कर चुका है।
महाराज शांतनु द्वारा अपने प्रेम के आवेश में आकर अनीति पूर्ण फैसला लिया गया जिसकी वजह से वे स्वयं उनकी पत्नी एवं भीष्म एक कष्टप्रद जीवन जीने के लिए मजबूर हुए साथ ही संपूर्ण हस्तिनापुर का भविष्य अंधकारमय बन गया। उनके इस अनैतिक फैसले से भरत वंश की गणतंत्र की परंपरा टूट गई। एवं भविष्य में महाभारत जैसे घोर संग्राम को जन्म दिया।
इसलिए का निचोड़ यही है कि व्यक्ति को यथासंभव नीति पर ही चलना चाहिए। किसी कारणवश यदि उससे नीति की अवहेलना होती भी है तो दोबारा उसे सुधारते हुए नीति पर आ जाना चाहिए। प्रतिज्ञा का यह मतलब कभी नहीं होता कि वह अनीति होने दे। वर्तमान में भविष्य के लिए समझौता नहीं किया जाना चाहिए। और ना ही जैसा कि देशराज द्वारा अपनी पुत्री सत्यवती के लिए यह शर्त रखी गई थी कि उसका बेटा हस्तिनापुर का राजा बनेगा, के द्वारा किसी उचित कार्य को करने से रोकने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। ऐसे निर्णय सर्वथा स्वयं के लिए एवं आप से जुड़े लोगों के लिए और ना जाने कितने लोगों के लिए दुख कर साबित होते हैं
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