मेरे बचपन की इकलौती सौगात हो तुम
ओ मेरी यादों के रहनुमा ,बड़ी खास हो तुम।
तुम वह धारा हो, जो बचपन के समंदर में मुझे बहा ले जाती हो
उस समय के हर मोड़ से मेरा परिचय करा लाती हो।
लड़कपन कि उस छोटे ताल में खिली हुई कली कमाल हो तुम।
, ए मेरे दोस्त, बड़ी खास हो तुम।
कभी हंस के, कभी मुस्कुरा के, तो कभी उदास हो तुम।
कभी खत्म ना हो वह अधूरी सौगात हो तुम।
जीवन के विकास में हर पल मेरे साथ हो तुम
बचपन की याद हो तुम बड़ी खास हो तुम
समय वह था जब प्यार को जानता न था मैं
उस मधुर सुरस प्यार को जगाने वाला एहसास हो तुम
आज जब आधा जीवन बीत गया
तो यह एहसास हुआ शायद मेरा पहला प्यार हो तो तुम
मेरे बचपन का एक ख्वाब हो तुम, बड़ी खास हो तो तुम
यह जीवन एक मधुर संगीत है
मिलना बिछड़ना मिलकर फिर बिछड़ना यही जीवन की रीत है
सदियों बाद भी दरमयां कुछ मधुर संगीत रह जाए यही सच्ची प्रीत है
मेरे जीवन के सरगम की एक ताल हो तुम, बड़ी खास हो तुम।
बरसो गुजर गए तुमसे गुफ्तगू ना हुई
अब जब मौका मिला तो समय की कमी खल गई
हड़बड़ाहट में,
दिल की बात जुबां पर बहुत जल्दी आ गई
जो तुमको दुखी कर गई, और मुझे उदास
इस उदासी में भी मेरे पास हो तुम
ए मेरे दोस्त बड़ी खास हो तुम।
ऐसे नज़्म जिंदगी में एक बार ही लिखे जाते हैं
इस नज्में को संभाल के रखना
खता हो हमसे तो भुला के रखना
बड़े खास हो तुम
ए मेरे दोस्त इस दोस्ती को निभा के रखना।
Subhash....
Well nicely written ....one of your best.
ReplyDelete👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
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