Tuesday, April 28, 2020

हे मित्र,जीवन जीना है तो टेढ़ा बनो!

यह जीवन इतना सरल नहीं है इसमें तरह-तरह के उतार-चढ़ाव, धूप छांव, हंसी खुशी, सुख दुख, हंसना रोना, पग पग पर उपस्थित है। हर व्यक्ति को जिंदगी में एक बार नहीं बल्कि कई बार इस तरह के एहसासों से गुजरना पड़ता है। कोई इनसे अछूता नहीं है। हम सब ने अपनी अपनी जिंदगी में इन सारे एहसासों को महसूस किया है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इन एहसासों से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं ,बल्कि बहुत लोग ऐसे होते हैं जो इन एहसासों से काफी गहराई तक प्रभावित हो जाते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जब ऐसा समय आता है तब अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए बड़ी ही आसानी से इन प्रकार के दुख देने वाले क्षणों से बाहर आ जाते हैं । वही कुछ लोग अपनी भावनाओं की कमजोरी के चलते इस प्रकार की विकट परिस्थिति आने की संभावना जानते हुए भी, इन परिस्थितियों को रोकने का सफल प्रयास नहीं कर पाते।

तुम ऐसे लोगों की क्यों परवाह करते हो जो तुम्हारे बारे में सोचते भी नहीं। तुम उनके जीवन में हो लेकिन अर्थ ना रहने जैसा ही है, ऐसे लोगोंकी परवाह करके तुम स्वयं को कष्ट क्यों देते हो, ओह ! आज मैंने कितने कड़े शब्दों का उपयोग किया, रवीना को कितना दुख हुआ होगा,जबकि तुम्हारे शब्द सर्वथा निर्मल और पवित्र थे, बावजूद इसके तुमने खेद प्रकट किया, उसे कोई असर ना हुआ, तुम्हारे खेद का जवाब देना भी उचित नहीं समझा, ऐसे लोगों को अपने जीवन में रखकर, उनकी याद को पाल कर, अपना कष्ट क्यों बढ़ाते हो,

जीवन में कटु अनुभव जरूरी है, यह कटु अनुभव हमें निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करते हैं, अन्य शब्दों में कहे तो हमें कठोर बनाते हैं। हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का पाठ सिखाते हैं, निश्चित ही यह पाठ जीवन में आवश्यक भावनाओं को नियंत्रित करने में बहुत महत्वपूर्ण सहायक होते हैं, जिससे कि व्यक्ति भविष्य में आने वाले दुखों से बच जाता है। इसी प्रकार अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सुखद परिणाम देने वाले निर्णय को लेने की क्षमता को यहां टेढ़ा होना कहा गया है।

आज जो व्यक्ति जितना सीधा और सरल है उसका उतना ही ज्यादा शोषण होने की आशंका बनी हुई है। अगर वह नौकरी करने जाता है तो नौकरी देने वाला यह कोशिश करेगा कि उससे बिना कुछ कीमत चुकाए ही या बहुत ही कम कीमत में काम करवा लिया जाए। अगर वह दुकान में सामान लेने जाता है तो उसे दुकानदार कोशिश करता है अच्छी से अच्छी कीमत वसूले एवं घटिया से घटिया सामान उसे टीका दे। सड़क पर नियमों का पालन कर चलते हुए, ऐसा व्यक्ति जो सर्वथा कानून की अवहेलना करता है बिना किसी कारण के ही दो शब्द सुना के चला जाता है।

आपका चरित्र निर्मल है, पवित्र है ,स्वच्छ है कभी किसी को मन की सचेतन अवस्था में किसी भी प्रकार का कष्ट देने का प्रयास  नहीं किया, बावजूद इसके सर्वथा जीवन में कष्ट आप की ही झोली में आए हैं। एक भवन निर्माण करने वाला बिल्डर, वह घर जो किसी और को बेचा जा चुका है तुम्हें भी बेच देता है, अब तुम उसमें रह नहीं सकते , क्योंकि उस मकान पर मालिकाना हक दिखाने वाले एक से ज्यादा है। जबकि उस भवन निर्माण करने वाले बिल्डर पर दसों की संख्या में कानूनी केस चल रहे हैं।

इसलिए है मित्र ये जीवन है इसमें लड़ना सीखो, दायरे में रहते हुए स्वार्थी बनो, कोई तुम्हें बोले तो तुम भी चुप ना रहो, अपने अधिकारों को जानो और उनका उपयोग करना सीखो, अपने अधिकारों को मांगना सीखो, हे मित्र जीवन जीना है तो थोड़ा टेढा़ बनो

Friday, April 24, 2020

खाकी वर्दी

जब जब विपरीत घङी थी,
तब भी पूरे जज्बे से खाकी खङी थी ।

कङी धूप और बारिश की झड़ी थी,
तब भी पूरे जज्बे से खाकी खङी थी।

जब सब को होली और दिवाली की पङी थी, 
तब भी पूरे जज्बे से खाकी खङी थी।

जब जब जिंदगी जीने का ख्याल आया, 
तब भी देश भक्ति- जन सेवा आङे खङी थी।

अभी भी वर्दी  निडर मौत के  सामने खङी हैं, 
फिर भी लोगों की उँगली खाकी  पर पङी हैं।


मंदिर मस्जिद और गुरूद्वावारे में जंजीर की लङी थी।
तब खाकी ही एक उम्मीद की घङी थी,

आज मुझे खाकी पर यकीन आ गया, 
क्योंकि सभी दुखों की खाकी ही जङी हैं l

जब जब विपरीत घङी थी,
तब भी पूरे जज्बे से खाकी खङी थी ।

Yogendra..

Wednesday, April 22, 2020

भीष्म प्रतिज्ञा,

नीति एवं प्रीति के मध्य में जीत हमेशा नीति की होती है, प्रीति का प्रभाव क्षणिक होता है या जीवन जीवन भर भी हो सकता है लेकिन समाज देश वाह एक बड़े समुदाय का कल्याण है करने की शक्ति जिसका असर जन्म जन्मांतर तक सर्वकालिक होता है वह नीति होती है।

कालिदास का विश्व प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शकुंतलम तो आपने कहीं ना कहीं पढ़ा या सुना तो जरूर होगा। इस नाटक में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत, श्री करणी ऋषि के आश्रम में उनके दर्शन की अभिलाषा से जाते हैं। लेकिन वहां उन्हें कड़वे ऋषि की पुत्री शकुंतला मिलती है जिससे उन्हें प्रेम हो जाता है। दोनों के विवाह से भरत नाम का बालक जन्म लेता है जो संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त कर लेता है। बाद में उन्हीं के नाम से इस भारत भूमि को भारतवर्ष के नाम से जाना गया। राजा भरत के 9 पुत्र थे लेकिन जब उनके सामने उनमें से किसी एक को युवराज चुनने का प्रश्न आया तब उन्होंने यह पाया कि उनके दो पुत्रों में से एक भी युवराज बनने के योग्य नहीं है। तब उन्होंने अपनी प्रजा में से एक योग्य व्यक्ति बामण न्यू को हस्तिनापुर का राजा बनाने का निर्णय लिया। और यहीं से भारतवर्ष के गौरव की कहानी प्रजातंत्र की शुरुआत होती है। इसकेेेेे बाद से ही हस्तिनापुर का राजा वंंश के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर राजा द्वारा मनोनीत किया जाता था।

राजा शांतनु में भी हस्तिनापुर के एक प्रतापी राजा थे, इन्हें गंगा नदी के किनारे एक दिन स्वयं गंगा एक स्त्री रूप में मिली थी पश्चात दोनों ने विवाह किया एवं नंगा को शांतनु से 7 पुत्र हुए इन सातों पुत्रों को गंगा ने नदी में बहा दिया एवं जब आठवें पुत्र को नदी में बहाने जा रही थी तभी शांतनु ने उन्हें रोक दिया। ऐसा करने पर गंगा उन्हें छोड़ कर चली गई। शांतनु के आठवें पुत्र का नाम देवव्रत था जो आगे चलकर भीष्म के नाम से जाने गए।

स्वार्थ सर्वथा यदि वर्तमान में नहीं तो भविष्य में चढ़कर दुख का कारण बनता है। जब शांतनु को पुनः देशराज की पुत्री सत्यवती से प्रेम हुआ एवं शांतनु देशराज के पास सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव लेकर गए तब उन्होंने यह शर्त रखी कि हस्तिनापुर की राजगद्दी पर मेरी पुत्री का प्रथम बालक की बैठेगा। जबकि इसके पहले शांतनु देवव्रत को राजा बनाने की घोषणा कर चुके थे अतः शांतनु कुल की गणतंत्र की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए दुखी मन से वापस आ गए। लेकिन उनके दुख को देवव्रत समझ गए एवं देशराज के पास जाकर यह प्रतिज्ञा की की मैं जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा एवं राजगद्दी अपनी माता सत्यवती के पुत्रों को दे दूंगा। ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा के बाद से ही देवव्रत भीष्म के नाम से जानें गए

महाराज शांतनु ने सत्यवती से विवाह तो कर लिया लेकिन वह संपूर्ण जीवन इस बात का प्रचार करते रहे कि उनकी प्रेम अग्नि में भीष्म का संपूर्ण जीवन चल गया। उन्होंने हमेशा यह माना की उनके प्रेम ने नीति की अवहेलना की जिससे भरत वंश की गणतंत्र राज्य की परंपरा आज टूट रही है साथ ही भीष्म को एक कठोर नीरज जीवन भी उन्हीं के कारण मिला है। सत्यवती को भी जीवन भर यह दुख रहा की उनका पुत्र भीष्म उनकी खुशी के लिए अपना संपूर्ण जीवन प्रतिज्ञा की बेदी में अर्पित कर चुका है।

महाराज शांतनु द्वारा अपने प्रेम के आवेश में आकर अनीति पूर्ण फैसला लिया गया जिसकी वजह से वे स्वयं उनकी पत्नी एवं भीष्म एक कष्टप्रद जीवन जीने के लिए मजबूर हुए साथ ही संपूर्ण हस्तिनापुर का भविष्य अंधकारमय बन गया। उनके इस अनैतिक फैसले से भरत वंश की गणतंत्र की परंपरा टूट गई। एवं भविष्य में महाभारत जैसे घोर संग्राम को जन्म दिया।

इसलिए का निचोड़ यही है कि व्यक्ति को यथासंभव नीति पर ही चलना चाहिए। किसी कारणवश यदि उससे नीति की अवहेलना होती भी है तो दोबारा उसे सुधारते हुए नीति पर आ जाना चाहिए। प्रतिज्ञा का यह मतलब कभी नहीं होता कि वह अनीति होने दे। वर्तमान में भविष्य के लिए समझौता नहीं किया जाना चाहिए। और ना ही  जैसा कि देशराज द्वारा अपनी पुत्री सत्यवती के लिए यह शर्त रखी गई थी कि उसका बेटा हस्तिनापुर का राजा बनेगा, के द्वारा किसी उचित कार्य को करने से रोकने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। ऐसे निर्णय सर्वथा स्वयं के लिए एवं आप से जुड़े लोगों के लिए और ना जाने कितने लोगों के लिए दुख कर साबित होते हैं

Thursday, April 9, 2020

बड़ी खास हो तुम

बचपन की मीठी सी भूली सी धुंधली सी आधी अधूरी सी याद हो तुम
मेरे बचपन की इकलौती सौगात हो तुम
ओ मेरी यादों के रहनुमा ,बड़ी खास हो तुम।

तुम वह धारा हो, जो बचपन के समंदर में मुझे बहा ले जाती हो
उस समय के हर मोड़ से मेरा परिचय करा लाती हो।
लड़कपन कि उस छोटे ताल में खिली हुई कली कमाल हो तुम।
, ए मेरे दोस्त, बड़ी खास हो तुम।

कभी हंस के, कभी मुस्कुरा के, तो कभी उदास हो तुम।
कभी खत्म ना हो वह अधूरी सौगात हो तुम।
जीवन के विकास में हर पल मेरे साथ हो तुम
बचपन की याद हो तुम बड़ी खास हो तुम

समय वह था जब प्यार को जानता न था मैं
उस मधुर सुरस प्यार को जगाने वाला एहसास हो तुम
आज जब आधा जीवन बीत गया
तो यह एहसास हुआ शायद मेरा पहला प्यार हो तो तुम
मेरे बचपन का एक ख्वाब हो तुम, बड़ी खास हो तो तुम

यह जीवन एक मधुर संगीत है 
मिलना बिछड़ना मिलकर फिर बिछड़ना यही जीवन की रीत  है 
सदियों बाद भी दरमयां कुछ मधुर संगीत रह जाए यही सच्ची प्रीत है
मेरे जीवन के सरगम की एक ताल हो तुम, बड़ी खास हो तुम।

बरसो गुजर गए तुमसे गुफ्तगू ना हुई 
अब जब मौका मिला तो समय की कमी खल गई
हड़बड़ाहट में,
दिल की बात जुबां पर बहुत जल्दी आ गई
जो तुमको दुखी कर गई, और मुझे उदास
इस उदासी में भी मेरे पास हो तुम
ए मेरे दोस्त बड़ी खास हो तुम।

ऐसे नज़्म जिंदगी में एक बार ही लिखे जाते हैं
इस नज्में को संभाल के रखना
खता हो हमसे तो भुला के रखना
बड़े खास हो तुम
ए मेरे दोस्त इस दोस्ती को निभा के रखना।

Subhash....



Wednesday, April 8, 2020

o maa ओ मां

लोरी सुनाती हो या अपनी गोद का झूला बनाती हो
 या बाहों में लेकर चक्कर लगाती हो
ओ मा यह तो बताओ ,तुम अपनी बेटी को कैसे सुलाती हो।

खरगोश जैसा मुंह बनाती हो या बंदर जैसा हूं- हूं चिल्लाती हो
या बेटी के सामने नाचती गुनगुनाती हो
ओ मां यह तो बताओ तुम अपनी  रोती  बेटी को कैसे चुप कराती हो।

आंखें फाड़ के डराती हो या धीमे-धीमे से पूचकारती हो
मार के रुलाती हो या गुदगुदी लगाती हो
ओमा यह तो बताओ अपनी भूखी बेटी को खाना कैसे खिलाती हो।

नन्हें पैरों को चूम के या हाथों में लेकर  झूमके
खेलते हुए देख के या उसकी हंसी में हंस के
ओ मां यह तो बताओ तुम अपनी बिटिया से प्यार कैसे जताती हो।

ओमा इस दुष्ट समाज को देखकर, अपनी बिटिया के भविष्य के बारे में सोच कर
यह तो बताओ कि तुम और क्या-क्या करती हो

Subhash...

Sunday, April 5, 2020

मोदी के आवाहन पर देश ने खूब दिए जलाए

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल की शाम रात को 9:00 बजे 9 मिनट के लिए अपने घर की सभी लाइट्स ऑफ करके देश के वासियों से आव्हान किया था कि वह एकता प्रदर्शित करने के लिए एवं इस कोरोनावायरस महामारी से लड़ने के लिए डॉक्टर्स, नर्सेज ,पैरामेडिकल स्टाफ ,पुलिस ,सफाई कर्मचारी एवं वह  हर व्यक्ति जो अपना सहयोग प्रदान कर रहा है उनके प्रति आदर सम्मान व सहयोग प्रदर्शित करने हेतु, दीए जलाएं, लैंप जलाएं, टॉर्च और कुछ नहीं तो मोबाइल का टॉर्च जलाएं।

मोदी जी का यह आवाहन बहुत ही सफल रहा देश के हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हर मजहब और जाति के लोग एकता प्रदर्शित करने हेतु अपने अपने घरों में इस प्रकाश आवाहन को उत्सव बना दिया। इस पूरे प्रकाश उत्सव के दौरानमूल मंत्र सोशल डिस्टेंसिंग यानी की आपस में दूरी का लोगों ने विशेष ख्याल रखा। इस समय संपूर्ण भारत पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक एक दिखा।
देशभर के नेता पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मोदी जी के इस आह्वान ने उनका समर्थन किया एवं दिए जलाएं।हमारे देश के वीर जवानों ने चाहे वह भारतीय सेना हो या फिर पैरामिलिट्री फोर्स को उन्होंने भी दीप जलाकर अपनी शक्ति प्रदर्शित की।
यह अद्भुत नजारा था कि वह मुस्लिम परिवार जो कभी भी अपने घरों में दीपक नहीं जलाते थे आज वह भी एक कदम आगे आए और अपने घरों में टॉर्च मोबाइल की टॉर्च जलाकर अपनी एकता व देश के प्रति प्रेम प्रदर्शित किया।
आज जितना जोश और जिद्दी एकता हमने इस दीपू उत्सव के साथ दिखाई है निश्चित ही हमें अपने ऊपर अपने देशवासियों के ऊपर विश्वास हो गया है कि इस कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ यह युद्ध हम जरूर जीतेंगे।
Subhash

#9baje9minute

Thursday, April 2, 2020

श्वेत रक्त


देखा था तुमको मैंने 

धूप में तपते हुए

दौड़ते हुए गर्म रेत में और ना थकते हुए

सूरज से लड़ते हुए पसीना टपकते हुए और पानी की तरफ देखकर हंसते हुए

देखा था मैंने तुमको धूप में तपते हुए


घड़ी की सुई से तेज तुम्हारे कदमों को थिरकते हुए

सुना था तुम्हारी धड़कनों को प्रेम की अग्नि से तेज धड़कते हुए

देखा था मैंने तुम्हें ,जब सब सोते थे तब पसीना बहाते हुए।

देखा था मैंने तुम्हें सूरज से लड़ते हुए धूप में तपते हुए 


औरों की आंखों में जहां नींद होती थी देखा था मैंने तुम्हारी आंखों में सपनों को सजते हुए

उन सपनों को पाने के लिए अथक परिश्रम करते हुए

लड़ते हुए इस जहां से, हजारों मुख चुप करते हुए

देखा था मैंने तुम्हें अपने सपनों की ओर बढ़ते हुए।


सांसों में संयम था, उस अद्भुत कोलाहल के बीच में भी

देखा था मैंने तुम्हारी सांसों को रुक कर, भविष्य की कल्पना करते हुए

तुम्हारे कदम बढ़ चले थे एक नए युग की  रचना करते हुए।

देखा था मैंने तुम्हें धूप में तपते हुए सूरज से लड़ते हुए।



Subhash..

चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग

चंदा मामा दूर के नहीं अब चंदा मामा टूर के हो गए हैं बड़ा ही भावुक समय था चंद्रयान को चंद्रमा की धरती पर लैंड करते हुए देखना, पहल...