अक्सर कुछ बातें हम हमेशा याद करते हैं ,हमेशा जेहन में अपना एक स्थान रखते हैं और कभी भुलाए नहीं भूलते ,मरते दम तक ,ये यादें ही होती हैं जो कभी आपका साथ नहीं छोड़ती ,आपके सारे अपने ,आपके सारे दोस्त आपका साथ छोड़ देते हैं I लेकिन यह यादें आपका कभी साथ नहीं छोड़ती I
सभी युवा जानते होंगे की तरुण अवस्था में इश्क की जो ललक होती है उम्र के किसी पड़ाव में नहीं होती I अक्सर लोगों के साथ होता है और एक ऐसा दर्द देने वाला ,मीठा सा वाकया मेरे साथ भी हुआ I
वाकया उस समय का है जब हम अपनी युवावस्था मैं तरुण अवस्था से कदम रख ही रहे थे I वह लड़की जो मेरे घर के सामने रहा करती थी ,मैंने देखा कि वह हाथ में स्टील का कोई गोल बर्तन लिए हुए हैं और आसपास के सभी घरों में जा रही हैं और कुछ बांटकर दूसरे घर में जा रही है | मुझे एहसास हुआ यह तो शायद कोई प्रसाद बांट रही है ,मेरी तो दिल की धड़कने तेज हो गई यह सोच कर कि जब वह मेरे घर आएगी तो क्या होगा | मैं उस से क्या कहूंगा।,मैं उससे कुछ कह भी पाऊंगा या बिना कहे ही रह जाऊंगा ,अगर मैंने उससे कुछ कहा तो वह क्या बोलेगी, कहीं वह मुझसे गुस्सा ना हो जाए ,क्योंकि मैं उसे हरगिज नाराज नहीं करना चाहता था | मैं उसे छुप कर देखा करता था ,उसे इस बात का अहसास तोथा इतना मुझे यकीन है, लेकिन आज अब जब वह मेरे घर आने वाली है, मैं क्या करूं, शायद मैं इतना उत्साहित नहीं होता अगर मेरे घर में कोई होता तो! इत्तेफाक से आज घर में कोई नहीं था | आज मैं उससे बात कर सकता था ,आज मैं उसे अपने दिल की बात, बता सकता था | यही सारे विचार मेरे मन में घूम रहे थे |
इतने में मैंने देखा कि वह अब मेरे ब्लॉक में आ गई है | मैं तीन मंजिल वाले एवं 6 घरों वाले इस ब्लॉक में बाई तरफ की दूसरी मंजिल में रहता था | अरे अब वह मेरे घर आने वाली है, मैं क्या करूं ,उसको अपनी फीलिंग बताना ,वह तो आवश्यक है ही ,लेकिन मैं कैसे बताऊं, क्या मैं उसका हाथ पकड़ के उससे अपने दिल के एहसास को बताऊ या फिर एक चिट्ठी लिखकर उसे दे दू | उस समय फोन नहीं चला करते थे जब किसी को इश्क़ होता था तो वह आंखों ही आंखों में बात कर लिया करते थे ,मेरी आंखें तो उससे मिलती थी लेकिन यह समझ नहीं आता था कि मेरी आंखों की भाषा वह समझती है कि नहीं ? खैर मैंने फैसला किया कि मैं एक कोरे कागज में बहुत संक्षेप में अपनी दिल की बात उससे कहने की कोशिश करूंगा | मैंने जल्दी ही अपनी कॉपी में से एक पेज फ़ाड़ा, उसमें मैंने यह लिखा कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो ,तुम्हें देखे बिना मुझे चैन नहीं आता , मैं क्या करूं मुझे तो यह लगता है कि मैं तुम्हारे बिना मर ही जाऊंगा | बात को संक्षेप में लिखते हुए मैंने इस अपने पहले प्रेम पत्र को यहीं समाप्त कर दिया | ऊपर की तरफ मैंने एक फूल बनाने की कोशिश की (ड्राइंग मेरी हमेशा से बहुत खराब थी ) इसलिए फूल भी बहुत खराब बन गया ,खैर जो भी था जैसा भी था मेरे पास समय बहुत कम था, इसलिए मैंने उस प्रेम पत्र को बड़े प्यार से मोड़ दिया और अब उसका मैं बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगा कि कब वह मेरे घर आए और मैं उसे यह प्रेम पत्र थमाउं। आखिकार वह घड़ी भी आ गई जब वह मेरे घर की सीढ़ियां चढ़ रही थी | मैं उसे ऊपर आते हुए देख रहा था |
उसने हरे रंग की कमीज और गुलाबी रंग का सलवार पहन हुआ था और बड़ी खूबसूरत सी लखनवी जैसी चमड़े की चप्पल ,जो कि उसने पैरों में बहुत खूबसूरत लग रही थी ,पहन रखी थी | बाल लंबे तो थे ही और खुले हुए भी थे और थोड़े गीले भी थे, मेरी पड़ोसन तो बहुत खूबसूरत लग रही थी | यह सब देख कर मेरे दिल की धड़कन है और तेज हो गई | हे राम ! ना जाने क्या होगा अब ! जब मैंने यह देखा कि वह बस कुछ ही पलों में मेरे सामने होगी तो मैंने अपने घर का दरवाजा ढरका दिया। और मैं घर के थोड़ा अंदर आ गया (यह सब ड्रामा इसलिए किया ताकि उसे यह एहसास ना हो कि मेरी नजरें तो उसी पर जमी हुई है ) अब बस घर की कुंडी बजने ही वाली है |
(उस समय घर में डोरबेल नहीं थी इसलिए कुंडी ही बजा करती थी ) टॉक - टॉक टाक -टॉक , मैंने थोड़ा इंतज़ार किया फिर दरवाजे के पास गया ,अपनी सांसो को नियंत्रित करते हुए दरवाजा खोला। . कितनी खूबसूरत लग रही थी मेरी मल्लिका ए हुस्न ! बस मैंने भी अपनी नजरें उसकी नजरों में जमा दी | उसने कहा ,प्रसाद है ,मेरे घर में पूजा हुई थी ,उसका। नीचे उसके हाथो में देखा ,एक स्टील की डब्बे में पंजीरी थी। उससे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही तो मैंने सोचा अपने उस प्रेम पत्र को मैं इसी स्टील के कटोरे में डाल देता हूं। मैंने कहा प्रसाद लेने के लिए कटोरी ले आता हूं | ओर मैं अंदर चला गया और बड़ी हिम्मत के साथ मैं कटोरी के साथ प्रेम पत्र भी ले आया। जब उसने मुझे प्रसाद दिया और उसके जाने के कुछ पल पहले ही मैंने वह प्रेम पत्र उस प्रसाद के कटोरे में डाल दिया ,पता नहीं यह कैसे हो गया लेकिन होगया। उसने मुझे घूर कर देखा और चली गई।

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