पुलिस क्या गाली खाने और पिटने के लिए बनी है?
16 जून को देल्ही के मुखर्जी नगर इलाके मे पुलिस की गाड़ी और एक सरदारजी की सवारी वेन की टक्कर होती है । पुलिस वाले वेन जिसे 17 साल का नाबालिक लड़का चला रहा था को साइड मे गाड़ी लगाने का बोलते है तो साथ मे कंडक्टर सीट पर बैठ उसका पिताजी अपनी कृपाण (तलवार) निकाल कर पुलिस पर हमला कर देता है। इतना होने पर आम आदमी भी अपनी आत्मरक्षा मे रेस्पोंड करता तो क्या पुलिस को हक़ नहीं था। मे पुलिस द्वारा सड़क पर सरदारजी को पीटने का पक्षधर नहीं हु । पुलिस को सार्वजानिक पिटाई से बचना चाहिए था। मुझे व्यक्तिगत ऐसा लगता है क्योकि मे भी फील्ड मे रहता हु सरदारजी द्वारा पुलिस पर तलवार से हमला और पुलिस के आत्मसम्मान को गलियो और शब्दों से इतना चोट पहुचाई होगी की पुलिसवालो ने नोकरी दाव पर लगा कर उसे कैमरों और लोगो के बीच पिट दिया।
बाद मे जैसा हमारा समाज करता है समुदाय विशेष इकट्ठा होकर पुरे पुलिस थाने की फ़ोर्स को पिटते है। और समाज के रक्षको पर उलटी एफआईआर होती है उन्हें ससपेंड कर जाँच खड़ी की जाती है।
हमारा समाज आज भी भारतीय के रूप मे कम तथाकथित मराठी ,सिंधी , सिख, मुस्लिम, बुद्ध, जैन, दलित, ब्राह्मण, समुदाय के रूप मे जाना जाता है। किसी के साथ कुछ भी गड़बड़ होती है तो वो अपने समुदाय को लेकर थाने का घेराव कर देता है।
और इसकी गाज पुलिस वालो पर ही गिरती है।
कोई मानवाधिकार वाला पुलिस के लिए खड़ा नहीं होता । उनके परिवार वालो के बारे मे कोई नहीं सोचता।
पुलिस जो 16..16 घंटे काम करती है। खुद त्यौहार नहीं मनाती ताकि देश त्योहार मना सके। पुलिस के मकान देख ले रहन सहन देख ले तो पता चलेगा की नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर पुलिस से हम मोरल पोलिसिंग पॉजिटिव पोलिसिंग की उम्मीद करते है।(लेकिन हम भूल जाते है की नरक मे तो यमदूत ही मिलेंगे देवदूत नहीं।) छुट्टी के नाम पर अधिकारियो के पेर पकड़ो,,, घर मे परिवार वालो के ताने सुनो की तुम तो किरायेदार हो तुमारा असली घर तो थाना है। नोकरी और परिवार मे सामन्जस्य बैठाना फिर पॉजिटिव साफ सुथरी नोकरी करना,,,, कोई घटना या दंगा होने पर सबसे आगे पुलिस जो पत्थर खाये गोली खाये मार खाये लेकिन कुछ न बोले।
पुलिस अधिकारियो के कहने पर चेकिंग करे तो हर दूसरा आदमी किसी नेता का रिश्तेदार होना बताता है और पुलिस को देख लेने और वर्दी उतरवा देने की धमकी देता है। लोग जितना समय पुलिस से उलझने मे लगाते है उतने समय मे वाहन के मूल दस्तावेज़ अपने साथ रख कर हेलमेट लगा ले,, मजाल है कोई पुलिस वाला फिर परेशां कर ले। क्योकि पुलिस एक अनुशासित फ़ोर्स हैं इसलिए अपने हक़ के लिए भी कोई संघठन नहीं बना सकती । जिस तरह समाज भीड़तंत्र की और बढ़ रहा है यदि पुलिस सड़को पर इकट्ठा होकर आ गयी तो अराजकता फ़ैल जायेगी।
निति निर्माताओ को चाहिए की वो समाज मे पुलिस और जनता के बिच मे एक विश्वास और सम्मान पैदा करे । पुलिस को भी सामाजिक चेतना के केंद्र बिंदु के रूप मे उभारना चाहिए। अंत मे जो घटना हुई गलत थी। पर समाज को समझना होगा ताली एक हाथ से नहीं बजती। एक पक्षीय सोच और कार्यवाही नहीं होना चाहिए। थाने मे घुस कर पुलिसवालो को पीटने वालो पर भी कार्यवाही होनी चाहिए।
हम भी कितने अजीब है व्यवस्था भी चाहते है और खुद ही अव्यवस्था फैलाते है| अगर हम सभी मुद्दों को बिना समझे अपनी प्रतिक्रिया देने लगे तो आये दिन अव्यवस्थ फैलाती रहेगी ,समाज और देश में शांति बनाये रखना मुश्किल हो जायेगा |
खुद मे अनुशासन लाये देश अपने आप अनुशासित हो जायेगा। वर्गहित मे सोचने की बजाय देश हित मे सोचे।
खुद मे अनुशासन लाये देश अपने आप अनुशासित हो जायेगा। वर्गहित मे सोचने की बजाय देश हित मे सोचे।
Expressed by
SI Praveen Thakarey
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