अक्सर जिंदगी मैं ऐसा मोड़ आता है जब हमें आगे अंधेरा ही नजर आता हैI तो हमें प्रकाश तक पहुंचने के लिए एक मार्ग चुनना पड़ता है।
चुनना -यह एैसा अधिकार है जो हमें सिर्फ हमारे संविधान में अनुच्छेद 21 से ही नहीं मिलता बल्कि सृष्टि के रचयिता में भी हमें दिया है, हम क्या थे, क्या है, क्या होंगे, यह परिस्थितियां नहीं, बल्कि हम स्वयं चुन सकते हैं, पर हम इस अधिकार के उपयोग से इतना डरते हैं कि हम इसे किस्मत, बुरे हालात जैसे नाम दे देते हैं। अगर इससे भी हमें "कूलिंग इफेक्ट" नहीं मिलता तो हम इसका सारा दोष किसी और इंसान पर मढ़ देते हैं, जैसे वह बुरा, उसने यह किया, फला फला आदि। पर यह "NO RESPONSIBLE ATTITUDE " कब तक साथ देगा। कुछ स्थाई हल तो देखना पड़ेगा। सबसे पहले जीवन को चुनना होगा, जीवन जैसा हम जीना चाहते हैंं, फिर उस जीवन को सजीव बनाने का प्रयास करना होगा, उसको दिशा देनी होगी और यह तब होगा जब हम हमारे अंदर के तत्व को जानेंगे! तत्व जो रचयिता ने आपको दिया है! फिर तत्व को फलने फूलने के लिए वातावरण भी आपको बनाना होगा। यह काम हम हमेशा दूसरों से अपेक्षा करते हैं, और यही है भ्रम, जब जीवन हमारा, सपना हमारा, तो वातावरण भी हमें ही बनाना है। यह सब करके तैयार होगा सजीव जीवन पथ।।
रात गंवाई सोय के, दिवस गवाह खाए।
हीरा जन्म अनमोल था, कौड़ी बदले जाए।।
हीरा जन्म अनमोल था, कौड़ी बदले जाए।।
Renu Dubey
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