Sunday, May 26, 2019

भागती जिंदगी

सुना था मैंने लोगों से की चलती है जिंदगी,
    पर खुद महसूस किया कि भागती है यह जिंदगी।

बचपन की यह दौड़ असलियत बन जाती है,
    नन्हे - नन्हे कदमों की आहट भागने लग जाती है।
पर यह जिंदगी कहां तरस खाती है,
    यह तो बस भागती जाती है।

न देगी मौका, तसल्ली से रोने का, न हंसने का,
    जब पकड़ना चाहो तो रेत सी फिसल जाती है
मुख्तसर यह जिंदगी  बस भागती जाती है।

असरार -ए -जिंदगी बस यह है काफिर,
    जो कोशिश तूने कि इसे चलाने की
तो यह लाश बन जाती है।
     घुरेब सी है जिंदगी,  बस भागती जाती है।
樂Renu....

इस भाव को पूरा करना शायद संभव नहीं,   
जिंदगी  है ही इतनी व्यापक। पर अगर आप अपने अद्वितीय, अनमोल अनुभव 
इसमें जोड़े तो हम जिंदगी के कुछ पहलुओं को को जरूर समझ पाएंगे।

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