Wednesday, May 15, 2019

प्रकाश मयी ईश्वर

वैसे तो यह मन हर पल ईश्वर की तलाश में रहता है, लेकिन जब भी जीवन में कठिन परिस्थितियां आती है, व्यक्ति विषम परिस्थितियों से जूझता है  तब वह अपने आप को ईश्वर के ज्यादा करीब पाता है। लेकिन सामान्य भाषा में ईश्वर क्या है अरे, कहां रहता है, वह कैसा दिखता है, उसका क्या काम है, उसका स्वरूप क्या है, उसका आकार क्या है, क्या यह संपूर्ण ब्रह्मांड ईश्वर के द्वारा संचालित होता है, यह सारे प्रश्न जब भी हम ईश्वर के बारे में सोचते हैं हमारे मन में उठ खड़े होते हैं। जब हम आंखें बंद करते हैं तो हमें अंधकार दिखता है उस अंधकार में हमें छटपटाहट होने लगती है घबराहट होने लगती है, कोई रास्ता नहीं दिखता यह मन की वह स्थिति होती है कि इस समय मन कहीं भी जा सकता है ब्रह्मांड के किसी भी स्थिति की कल्पना कर सकता है या वह अपने आपको वहां स्थापित कर सकता है वहां से उपस्थित हो सकता है यह बिल्कुल उसी तरह है जिस प्रकार अंतरिक्ष में जहां प्रकाश नहीं है वहां हम उपस्थित हैं हमें कुछ नहीं दिख रहा है। चारों तरफ घोर अंधकार है। इस अंधकार में अगर हमें कहीं प्रकाश दिख जाए तो समझ लो वह ईश्वर है। बिल्कुल यही सिद्धांत हम सबके जीवन में भी लागू होता है यह जीवन यह, नश्वर काया और इनकी अनिश्चित आकांक्षाओं की पूर्ति के अंधकार में व्यक्ति संपूर्ण जीवन भर उलझा रहता है। इस पूरी पृथ्वी में से कुछ लोग ही होते हैं जो इस अंधकार से बाहर आ पाते हैं वे इस अंधकार भरे जीवन में प्रकाश मई ईश्वर को खोज लेते हैं। यह वह स्थिति होती है जब जीवन इस भौतिक विश्व की भौतिकवादी वस्तुओं से परे हो जाता है मनुष्य इस स्थिति में बस तटस्थ रहकर इन भौतिकवादी वस्तुओं का उचित उपयोग करता है। जिस समय मनुष्य इस स्थिति को प्राप्त कर लेता है यह कहा जा सकता है कि वह प्रकाश मई ईश्वर को प्राप्त करने के बहुत करीब आ गया है। यह सुनिश्चित हो जाता है कि उसका यह जीवन इस ईश्वर ने जिस लिए उसे यहां भेजा था वह सफल हो गया हो गया।

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