मध्यप्रदेश खनिज उत्पादन की दृष्टि से देश में अग्रणी स्थान रखता है। संयुक्त रूप से देश की जीडीपी में योगदान में से प्रदेश का चौथा स्थान है। मध्य प्रदेश देश का चौथा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है। राज्य में तांबा और मैग्नीज देश में सबसे अधिक उत्पादन होता है। मध्य प्रदेश खनिज भंडार की दृष्टि से देश में तीसरा स्थान रखता है। जबकि खनिज उत्पादन में मध्यप्रदेश देश में टॉप 8 स्टेट में आता है। हमारे प्रदेश में कुल 30 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं जिसमें से मात्र 20 प्रकार खनिजों का ही दोहन हम कर पा रहे हैं। जबकि प्रदेश में मध्यप्रदेश खनिज निगम की स्थापना 19 जनवरी 1962 को की गई थी एवं वर्तमान खनिज नीति 1995 में बनाई गई थी। इस हिसाब से अब तक खनिजों के उत्पादन एवं उसके दोहन में प्रदेश का दुनिया भर में नाम होना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश की जीडीपी में खनिजों का योगदान 3.5% यानी कि लगभग 6 से 7 हजार करोड़ के बीच है।
राज्य में लौह अयस्क के विशाल भंडार है। देश का एकमात्र राज्य स्लेट हो पालन होता है। मध्य प्रदेश की नई खनिज नीति 2010 में लागू की गई है मध्य प्रदेश के कुल मैगनीज का 50% भंडार है देश के कुल तांबा उत्पादन का 22% उत्पादन मध्य प्रदेश होता है । लौह अयस्क उत्पादन में प्रदेश का देश में पांचवा स्थान है। इस हिसाब से हम अपने ही अयस्क का इस्तेमाल करके प्रचुर मात्रा में स्टील का उत्पादन प्रदेश में कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।
कोयले को उद्योग की जननी व शक्ति का प्रतीक माना जाता है मध्यप्रदेश के कोयला भंडारों का उपयोग आगामी 600 वर्षों तक किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में बॉक्साइट का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है इसके बाद भी एलुमिनियम निर्माण के लिए प्रदेश में कोई फैक्ट्री नहीं है। प्रदेश से बड़ी मात्रा में मगेनीज अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और रूस जैसे देशों को निर्यात किया जाता है। प्रदेश के लौह अयस्क का निर्यात जर्मनी और जापान जैसे देशों को किया जाता है। स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश खनिज संपदा में अपने आप में प्रचुर भंडारण रखते हुए देश में औद्योगिक विकास की अच्छी संभावना है बावजूद इसके प्रदेश में औद्योगिक विस्तार नहीं हुआ है। अतः यह देश में औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा राज्य कहा जाता है।
मध्यप्रदेश में उद्योगों की स्थापना उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में अंग्रेजों द्वारा मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति यानी कि इसका देश के बीचो-बीच होना जिस वजह से देश के किसी भी भाग में उत्पादित वस्तु आसानी से कहीं भी भेजी जा सकती है। इसीलिए सन उन्नीस सौ चार से ही मध्य प्रदेश को औद्योगिक रूप से अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया जाने लगा था स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज 70 साल से ज्यादा हो गए हैं लेकिन उसने कारखाने नहीं लग सके जितने की अंग्रेजों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले मध्यप्रदेश में स्थापित किए थे। मध्य प्रदेश की प्रथम औद्योगिक नीति 1972 में घोषित हुई थी जिस के स्थान पर वर्तमान में नवीन औद्योगिक संवर्धन नीति 2014 लागू की गई है। इतना विशाल खनिज भंडार होने के बाद भी देश में पीतमपुर, मेघनगर, मुरैना पन्ना, मनेरी मंडला, पीलूखेड़ी राजगढ़ और मालनपुर भिंड यही क्षेत्र औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित किए गए हैं। जो कि मध्यम आकार के ही हैं। मध्यप्रदेश में खनिज, मानव बल, प्राकृतिक अधोसंरचना, मौसम , पानी की उपलब्धता को देखते हुए उद्योगों की स्थापना की जा सकती है लेकिन यह क्रमिक रूप से आने वाली सरकारों की विफलता ही रही है की यहां पर उद्योगों की स्थापना बहुत ही कम है। स्थिति यह है कि आज हम अपने कच्चे माल को विदेशों में निर्यात करते हैं और बाद में उन्हीं कच्चे माल से निर्मित वस्तुएं जैसे जापान से स्टील, अमेरिका व जर्मनी से विद्युत के सामान आदि को कई गुना अधिक दाम पर निर्यात करते हैं। यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत ही भयावह स्थिति है। जब हमारे देश की पूंजी बाहर जाएगी तो हमारे देश की आर्थिक स्थिति लागातार कमजोर होगी, देश की आर्थिक स्थिति को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
दुर्भाग्यवश हमारे देश के राजनेताओं की इच्छाशक्ति सिर्फ और सिर्फ वोट और सत्ता की कुर्सी के तरफ ही घूमती रही है। उन्होंने इससे बढ़कर देश के लिए कुछ भी नहीं सोचा।
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