Tuesday, October 8, 2019

कोई बहाना नहीं चलेगा

*बहानासाइटिस का इलाज कराएँ*

यह असफलता की बीमारी है।

चूँकि सफलता का संबंध लोगों से है, इसलिए सफल होने के लिए यह ज़रूरी है कि आप लोगों को अच्छी तरह से समझ लें। अगर आप आप लोगों लोगों को ध्यान से देखेंगे तो आप उनसे यह सीख सकते हैं कि ज़िंदगी में सफल कैसे हुआ जा सकता है। और यह सीखने के बाद आप उसे अपने जीवन में उतार भी सकते हैं;अभी हाल, बिना देरी के।

लोगों का अध्ययन गहराई से करें और जब आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि असफल लोगों को दिमाग़ की एक भयानक बीमारी होती है। हम इस बीमारी को अपेंडिसाइटिस की तर्ज़ पर बहानासाइटिस (excusitis) का नाम दे सकते हैं। हर असफल व्यक्ति में यह बीमारी बहुत विकसित अवस्था में पाई जाती है। और ज़्यादातर “आम” आदमियों में यह बीमारी थोड़ी–बहुत तो होती ही है।

आप पाएँगे कि बहानासाइटिस की बीमारी सफल और असफल व्यक्तियों के बीच का सबसे बड़ा अंतर होती है। सफलता की सीढ़ियों पर बिना रुके चढ़ने वाला व्यक्ति बहानासाइटिस का रोगी नहीं होता, जबकि असफलता की ढलान पर लगातार फिसलने वाला व्यक्ति बहानासाइटिस से गंभीर रूप से पीड़ित होता है। अपने आस–पास के लोगों को देखने पर आप पाएँगे कि जो व्यक्ति जितना सफल होता है, वह उतने ही कम बहाने बनाता है।

परंतु जो व्यक्ति कहीं नहीं पहुँच पाता और उसके पास कहीं पहुँचने की कोई योजना भी नहीं होती, उसके पास बहाने थोक में मौजूद रहते हैं। असफल लोग फ़ौरन से बता देते हैं कि उन्होंने अमुक काम क्यों नहीं किया, या वे उसे क्यों नहीं करते, या वे उसे क्यों नहीं कर सकते, या यह कि वे असफल क्यों हैं।

सफल लोगों की ज़िंदगी का अध्ययन करें और आप उन सबमें एक बात पाएँगे– असफल लोग जो बहाने बनाते हैं, सफल व्यक्ति भी वही बहाने बना सकता है, परंतु वह बहाने नहीं बनाता।

मैं जितने भी बेहद सफल बिज़नेसमैनों, मिलिट्री ऑफ़िसरों, सेल्समैनों, प्रोफ़ेशनल व्यक्तियों या किसी भी क्षेत्र के अग्रणी लोगों से मिला हूँ या जिनके बारे में मैंने सुना है, उनके सामने बहानों की कोई कमी नहीं थी। रूज़वेल्ट अपने बेजान पैरों का बहाना बना सकते थे; टूमैन “शिक्षा की कमी” का बहाना बना सकते थे, कैनेडी यह कह सकते थे “प्रेसिडेन्ट बनते वक़्त मेरी उम्र कम थी,” जॉनसन और आइज़नहॉवर हार्ट अटैक के बहाने के पीछे छुप सकते थे।

किसी भी बीमारी की तरह बहानासाइटिस का अगर वक़्त पर सही इलाज नहीं किया जाए तो हालत बिगड़ सकती है। विचारों की इस बीमारी का शिकार व्यक्ति इस तरह से सोचता है : “मेरी हालत उतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए। अब मैं लोगों के सामने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए कौन सा बहाना बना सकता हूँ? बुरी सेहत ? शिक्षा का अभाव ? ज़्यादा उम्र ? कम उम्र ? बदकिस्मती ? व्यक्तिगत विपत्तियाँ ? बुरी पत्नी ? माँ–बाप की गलत परवरिश ?”

असफलता की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति जब किसी “अच्छे” बहाने को चुन लेता है, तो फिर वह इसे कसकर जकड़ लेता है। फिर वह इस बहाने के सहारे लोगों को और ख़ुद को यह समझाता है कि वह जीवन में आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है।

और हर बार जब यह बीमार व्यक्ति बहाना बनाता है, तो वह बहाना उसके अवचेतन में और गहराई तक चला जाता है। जब हम उनमें दोहराव की खाद डालते हैं तो विचार, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक, ज़्यादा तेज़ी से फलने–फूलने लगते हैं। शुरुआत में तो बहानासाइटिस का रोगी जानता है कि उसका बहाना कमोबेश झूठ है। परंतु वह जितनी ज़्यादा बार अपने बहाने को दोहराता है, उतना ही उसे लगने लगता है। कि यही सच है और यही उसकी असफलता का असली कारण है।

सफलता की राह में अपने चिंतन को सही दिशा में ले जाने के लिए सबसे पहले तो आपको यह क़दम उठाना पड़ेगा कि आप बहानासाइटिस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवा लें। यह इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि बहानासाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो इंसान को ज़िंदगी भर सफल नहीं होने देती।

बहानासाइटिस की बीमारी कई तरह की होती है, परंतु मोटे तौर पर यह चार प्रकार की होती है : सेहत का बहानासाइटिस, बुद्धि का बहानासाइटिस, उम्र का बहानासाइटिस और क़िस्मत का बहानासाइटिस। आइए हम देखें कि इन सबसे ख़ुद को किस तरह बचा सकते हैं :

*बहानासाइटिस के चार सबसे लोकप्रिय रूप*

1.“मैं क्या करूँ, मेरी तबियत ही ठीक नहीं रहती।” यह सेहत का बहानासाइटिस है। परंतु सेहत का बहानासाइटिस भी कई तरह का होता है। कई लोग बिना किसी बीमारी के उल्लेख के यूँ ही कहते हैं, “मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है।” जबकि कई लोग अपनी बीमारी का नाम ज़ोर देकर अंडरलाइन करते हैं और फिर विस्तार से आपको बताते हैं कि उनके साथ क्या गड़बड़ है।

“बुरी” सेहत को लेकर हज़ार बहाने बनाए जा सकते  हैं, और उनसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि अपनी बीमारी के कारण ही आदमी वह नहीं कर पा रहा है जो वह करना चाहता है, अपनी बीमारी के कारण ही वह बड़ी ज़िम्मेदारियों का बोझ नहीं ले पा रहा है, इसी कारण वह ज़्यादा पैसा नहीं कमा पा रहा है, इसी कारण वह सफल नहीं हो पा रहा है।

लाखों–करोड़ों लोग सेहत के बहानासाइटिस से पीड़ित रहते हैं। परंतु क्या ज़्यादातर मामलों में यह सिर्फ बहाना नहीं होता ? ज़रा एक पल के लिए सोचें कि बेहद सफल लोग भी अपनी सेहत का रोना रो सकते थे, परंतु उन्होंने तो ऐसा कभी नहीं किया।

मेरे डॉक्टर मित्र मुझे बताते हैं कि इस दुनिया में कोई पूरी तरह स्वस्थ नहीं होता है। हर एक के साथ कोई न कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है। कई लोग कुछ हद तक या काफ़ी हद तक सेहत के बहानासाइटिस के सामने घुटने टेक देते हैं, जबकि सफलता चाहने वाले लोग ऐसा नहीं करते।
मेरे साथ एक ही दिन में दो घटनाएँ हुई जिनसे मुझे यह सीखने को मिला कि अपनी सेहत के बारे में सही और ग़लत नज़रिया क्या होता है। क्लीवलैंड में मेरे भाषण के बाद 30 साल का एक आदमी मुझसे अकेले में मिला। उसने कहा कि उसे भाषण तो बहुत बढ़िया लगा, परंतु उसने यह भी कहा, “पर मुझे नहीं लगता कि आपके विचारों से मुझे कोई फ़ायदा हो सकता है।”

उसने बताया, “मुझे हृदयरोग है और मुझे ख़ुद का ध्यान रखना पड़ता है।" इसके बाद उसने मुझे यह भी बताया कि वह चार डॉक्टरों के पास जा चुका है, परंतु डॉक्टर उसके दिल में कोई बीमारी नहीं ढूँढ़ सके। उसने मुझसे पूछा कि ऐसी स्थिति में उसे क्या करना चाहिए।

मैंने जवाब दिया, “मैं हृदयरोग के बारे में तो ज़्यादा नहीं जानता, परंतु एक आम आदमी के रूप में मैं आपको यह बता सकता हूँ कि इन परिस्थितियों में मैं क्या करता। पहली बात तो यह, कि मैं सबसे अच्छे हृदयरोग चिकित्सक के पास जाता और उसकी राय को अंतिम मान लेता। आपने पहले ही चार डॉक्टरों से चेकअप करवा लिया है और उन्हें आपके दिल में कोई ख़राबी नज़र नहीं आई। तो अब पाँचवें डॉक्टर का फ़ैसला आपको मान लेना चाहिए। हो सकता है कि आपके हृदय में कोई रोग न हो, और यह सिर्फ़ आपके मन का वहम हो। परंतु अगर आप इसकी चिंता करेंगे तो एक न एक दिन आपको सचमुच हृदयरोग हो जाएगा। अगर आप बीमारी के बारे में सोचते रहेंगे, उसे खोजते रहेंगे, उसकी चिंता करते रहेंगे तो अकसर आप इसी वजह से बीमार पड़ जाएँगे।

“मैं आपको दूसरी सलाह यह देना चाहता हूँ कि आप डॉक्टर शिड्लर की महान पुस्तक हाऊ टु लिव 365 डेज़ ए इयर पढ़े। डॉ. शिंड्लर इस पुस्तक में बताते हैं कि अस्पताल में जो मरीज़ भर्ती होते हैं उनमें से तीन चौथाई लोगों को दरअसल कोई शारीरिक बीमारी होती ही नहीं है। उनकी बीमारी का असली कारण मानसिक या भावनात्मक होता है। जरा सोचिए, हमारे देश के तीन चौथाई लोग सिर्फ़ इसलिए अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हुए हैं क्योंकि वे अपनी भावनाओं को क़ाबू में नहीं रख पाए। डॉ शिंड्लर की पुस्तक पढ़े और इसके बाद “भावनाओं को मैनेज‘ करना सीखें।

“तीसरी बात यह कि मैं तब तक ज़िंदादिल बने रहने का निश्चय करूँगा जब तक कि मैं मर ही न जाऊँ। फिर मैंने इस परेशान आदमी को वही सलाह दी, जो मेरे वकील दोस्त ने मुझे कई साल पहले दी थी। वकील दोस्त को टी . बी . था, परंतु इसके बाद भी वह वकालत करता रहा, अपने परिवार का मुखिया बना रहा, और जीवन का पूरा आनंद लेता रहा। अभी मेरे उस वकील दोस्त की उम्र 78 वर्ष है। उसने अपनी फिलॉसफी बताई । ‘मैं तब तक ज़िंदादिल रहूँगा जब तक कि मैं मर न जाऊँ। मैं ज़िंदगी और मौत को लेकर फालतू चिंता नहीं करूँगा। जब तक मैं इस धरती पर हूँ तब तक मैं ज़िंदा हूँ। तो मैं अधूरी ज़िंदगी क्यों जिऊँ ? मौत के बारे में चिंता करने में व्यक्ति जितना समय बर्वाद करता है, उतने समय तक वह वास्तव में मुर्दा ही होता है।”

मुझे इस बिंदु पर चर्चा ख़त्म करनी पड़ी, क्योंकि मुझे डेट्रॉयट जाने वाला हवाई जहाज़ पकड़ना था। हवाई जहाज़ में दूसरा अजीबोगरीब परंतु सुखद अनुभव हुआ। जब हवाई जहाज़ आसमान में पहुँच गया तो मुझे टिक–टिक की आवाज़ सुनाई दी। हैरानी सेसे मैंने अपने पड़ोस में बैठे आदमी की तरफ़ देखा, जिसके पास से वह वह से आवाज़ आ रही थी।

वह मेरी तरफ़ देखकर मुस्कराया और उसने मुझसे कहा, “डरिए नहीं, मेरे पास कोई बम नहीं है। यह तो मेरा दिल धड़क रहा है।”

मुझे यह सुनकर हैरानी हुई, इसलिए उसने मुझे पूरी कहानी सुनाई।

सिर्फ़ 21 दिन पहले ही उसका ऑपरेशन हुआ था, जिसमें उसके दिल में एक प्लास्टिक वॉल्व फिट किया गया था। उसने बताया कि टिकटिक की आवाज़ कई महीनों तक आती रहेगी, जब तक कि नकली वॉल्व पर नया ऊतक नहीं उग आता। मैंने उससे पूछा कि अब वह क्या करने वाला है।

“अरे,” उसने कहा, “मेरी बहुत सी योजनाएँ हैं। मिनेसोटा पहुँचकर मैं वकालत पढ़ने वाला हूँ। शायद मुझे किसी दिन सरकारी नौकरी भी मिल जाए। डॉक्टरों ने मुझसे कहा है कि मुझे पहले कुछ महीनों तक सावधानी रखनी पड़ेगी, परंतु कुछ महीनों के बाद मेरा दिल विलकुल ब्रांड न्यू हो जाएगा।”

तो ये रहे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में दो अलग–अलग नज़रिए। पहला आदमी तो यह जानता भी नहीं था कि उसे कोई बीमारी थी भी या नहीं। इसके बावजूद, वह चिंतित था, परेशान था, हार के रास्ते पर जा रहा था और आगे नहीं बढ़ने के बहाने बना रहा था। दूसरे आदमी का हाल ही में बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआ था, फिर भी वह कुछ नया करने के लिए उत्सुक था, आशावादी था। अपनी सेहत के बारे में दोनों की सोच में कितना बड़ा फ़क़ था!

सेहत के बहानासाइटिस का मुझे व्यक्तिगत अनुभव भी है। मुझे डायबिटीज़ है। जब मुझे यह बीमारी हुई (कोई 5000 इंजेक्शन पहले), तो डॉक्टर ने मुझे यह हिदायत दी थी, “डायबिटीज़ एक शारीरिक बीमारी है, परंतु अगर इसके बारे में आपका नज़रिया नकारात्मक रहेगा तो आप बहुत परेशान रहेंगे और आपकी बीमारी भी बढ़ सकती है। अगर आप इसके बारे में चिंता करते रहेंगे, तो
आपकी ज़िंदगी नर्क बन सकती है।”

डायबिटीज़ होने के बाद मैं बहुत से डायबिटीज़ के मरीज़ों के संपर्क में आया। मैं आपको बता दूँ कि इस बीमारी के बारे में लोगों के कितने विरोधाभासी विचार होते हैं। एक आदमी को यह बीमारी शुरुआती अवस्था में है और वह इसे लेकर बहुत परेशान रहता है। ज़रा सा मौसम बदलता है तो वह घबरा जाता है, मूर्खतापूर्ण रूप से अपने आपको लवादे में छुपा लेता है। उसे इनफेक्शन से इतना डर लगता है, कि वह सर्दी–खाँसी वाले आदमी को देखते ही दूर भाग जाता है। वह डरता है। कि कहीं वह ज़्यादा मेहनत न कर ले, इसलिए वह कभी कुछ करता ही नहीं है। उसका ज़्यादातर समय और मानसिक ऊर्जा इसी चिंता में बर्बाद होते हैं कि उसके साथ क्या–क्या बुरा हो सकता है। वह दूसरे लोगों को अपनी भयानक बीमारी की सच्ची–झूठी दास्तान सुना–सुनाकर बोर करता रहता है। दरअसल उसकी असली बीमारी डायबिटीज़ नहीं है। वह तो सेहत के बहानासाइटिस से पीड़ित है। वह बीमारी को असफलता के बहाने की तरह इस्तेमाल कर रहा है। किसलिए ? क्योंकि वह लोगों की सहानुभूति हासिल करना चाहता है।

दूसरी तरफ़ एक बड़ी प्रकाशन फ़र्म का डिवीज़न मैनेजर है, जो डायबिटीज़ का गंभीर रोगी है। वह ऊपर वाले मरीज़ से 30 गुना ज़्यादा इन्सुलिन लेता है। परंतु वह बीमारों की तरह नहीं जीता है। उसे अपने काम में मज़ा आता है और वह ज़िंदगी का पूरा आनंद लेता है। एक दिन उसने मुझसे कहा, “देखा जाए तो डायबिटीज़ एक समस्या तो है, पर दाढ़ी बनाना भी तो एक समस्या है। और मैं इस बारे में चिंता कर–कर के सचमुच बीमार नहीं पड़ना चाहता। जब मैं इन्सुलिन के इंजेक्शन लेता हूँ तो मैं अपनी बीमारी को नहीं कोसता हूँ, बल्कि उस आदमी को दुआएँ देता हूँ 
जिसने इन्सुलिन की खोज की है।”

मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त 1945 में जब युद्ध से लौटा, तो उसका एक हाथ कटा हुआ था। इसके बावजूद जॉन हमेशा मुस्कराता रहता था, हमेशा दूसरों की मदद करता रहता था। मैं जितने भी आशावादी लोगों को जानता हूँ, जॉन उन सबसे ज़्यादा आशावादी था। एक दिन मैंने उससे उसके कटे हुए हाथ के बारे में लंबी चर्चा की।

उसने कहा, “मेरा सिर्फ़ एक हाथ नहीं है। यह सही बात है, कि दो हाथ हमेशा एक हाथ से अच्छे होते हैं। परंतु पूरे शरीर को बचाने के लिए अगर एक हाथ काटना पड़े, तो यह महँगा सौदा नहीं है। और फिर, मेरी जीवनशक्ति तो अब भी 100 प्रतिशत बची हुई है। मैं इसके लिए कृतज्ञ है।”

मेरा एक और विकलांग दोस्त एक बेहतरीन गोल्फ़र है। एक दिन मैंने उससे पूछा कि वह सिर्फ़ एक हाथ से इतना अच्छा कैसे खेल सकता है, जबकि दोनों हाथों से खेलने वाले ज़्यादातर गोल्फ़र उसके जितना अच्छा नहीं खेल पाते हैं। उसने मेरी बात का ज़ोरदार जवाब दिया, “यह मेरा अनुभव रहा है कि सही रवैया और एक बाँह वाला आदमी, ग़लत रवैए और दोनों बाँह वाले आदमी को हमेशा हर सकता है।” सही रवैया और एक बाँह वाला आदमी, गलत रवैए और दोनों बाँह वाले आदमी को हमेशा हरा सकता है। इस बारे में कुछ देर सोचें। यह न सिर्फ़ गोल्फ़ के मैदान पर सच है, बल्कि यह ज़िंदगी के हर क्षेत्र में सच है।

सेहत के बहानासाइटिस से बचने के चार तरीके़

सेहत के बहानासाइटिस से बचाव के सर्वश्रेष्ठ वैक्सीन के चार डोज़ हैं :

1. अपनी सेहत के बारे में बात न करें। आप किसी बीमारी के बारे में जितनी ज़्यादा बात करेंगे, चाहे वह साधारण सी सर्दी ही क्यों न हो, वह बीमारी उतनी ही बिगड़ती जाएगी। बुरी सेहत के बारे में बातें करना काँटों को खाद–पानी देने की तरह है। इसके अलावा, अपनी सेहत के बारे में बातें करते रहना एक बुरी आदत है। इससे लोग बोर हो जाते हैं। इससे आपको आत्म–केंद्रित और बुढ़िया की तरह बातें करने वाला समझा जा सकता है। सफलता की चाह रखने वाले आदमी अपनी “बुरी” सेहत के बारे में चिंता नहीं करता। अपनी बीमारी का रोना रोने से आपको थोड़ी सहानुभूति तो मिल सकती है (और मैं सकती शब्द पर ज़ोर देना चाहूँगा), परंतु जो आदमी हमेशा शिकायत करता रहता है, उसे कभी किसी का सम्मान, आदर या वफ़ादारी नहीं मिल सकते।

2. अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दें। डॉ वॉल्टर अल्चरेज़ विश्वप्रसिद्ध मेयो क्लीनिक में एमेरिटस कन्सल्टेंट हैं। उन्होंने हाल ही में लिखा है, “मैं हमेशा फ़िजूल की चिंता
करने वाले लोगों को ऐसा न करने की सलाह देता हूँ। उदाहरण के तौर पर, मैंने एक आदमी को देखा जिसे इस बात का पूरा विश्वास था कि उसका ‘गाल ब्लैडर” ख़राब है, हालाँकि आठ बार अलग–अलग क्लीनिकों में एक्स–रे कराने पर भी उसका गाल ब्लैडर पूरी तरह सही दिख रहा था और डॉक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ़ उसके मन का वहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नहीं है। मैंने उससे विनती की कि वह अब तो मेहरबानी करके अपने गाल ब्लैडर का एक्स–रे कराना छोड़ दे। मैंने सेहत का ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान रखने वाले सैकड़ों लोगों को बार–बार जबरन ई . सी . जी. कराते देखा है और मैंने उनसे भी यही विनती की है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दें।

3. आपकी सेहत जैसी भी हो, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। एक पुरानी कहावत है, “मैं अपने फटे हुए जूतों को लेकर दु:खी हो रहा था, परंतु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही, इसके बजाय मैं कृतज्ञ हो चला।” इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या “अच्छा नहीं” है, आपको इस बारे में ख़ुश और कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या ‘अच्छा’ है। अगर आप कृतज्ञ होंगे तो आप कई असली बीमारियों से भी बचे रहेंगे।

4. अपने आपको यह अक्सर याद दिलाएँ, “ज़ंग लगने से बेहतर है घिस जाना।” आपको जीवन मिला है आनंद लेने के लिए। इसे बर्बाद न करें। ज़िंदगी जीने के बजाय अगर आप चिंता करते रहेंगे, तो आप जल्दी ही किसी अस्पताल में भर्ती नज़र आएँगे।

2. “परंतु मेरे पास सफल लोगों जितनी बुद्धि नहीं है।” बुद्धि का बहानासाइटिस या “मेरे पास
उतनी बुद्धि नहीं है” बहुत लोकप्रिय बहाना है। वास्तव में यह इतना आम है कि यह हमारे आस–पास के तक़रीबन 95 प्रतिशत लोगों में किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है। बहानासाइटिस के बाक़ी रूपों में तो व्यक्ति बढ़–चढ़कर बातें करता है, परंतु इस किस्म के बहानासाइटिस यानी बुद्धि के बहानासाइटिस में व्यक्ति चुपचाप दु:खी होता रहता है। ज़्यादातर लोग दूसरों के सामने यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनमें पर्याप्त बुद्धि या समझ नहीं है। परंतु, वे अंदर से यह बात महसूस करते हैं।

जब बुद्धि की बात आती है, तो हममें से ज़्यादातर लोग दो तरह की मूलभूत ग़लतियाँ करते हैं :

1.हम अपनी बुद्धि को कम आँकते हैं, और

2.हम दूसरे व्यक्ति की बुद्धि को ज़्यादा आँकते हैं।

इन गलतियों के कारण लोग काफ़ी नुक़सान में
रहते हैं। वे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने में असफल रहते हैं, क्योंकि उनमें “बुद्धि की ज़रूरत” होती है। परंतु तभी वहाँ एक ऐसा व्यक्ति आता है जो बुद्धि के बारे में ज़रा भी विचार नहीं करता और उसे वह काम मिल जाता है।

दरअसल महत्व इस बात का नहीं है कि आपमें कितनी वृद्धि है, बल्कि इस बात का है कि जो आपके पास है। आप उसका किस तरह उपयोग करते हैं। आपकी बुद्धि की मात्रा से ज़्यादा महत्वपूर्ण है वह चिंतन या वह नज़रिया जो आपकी बुद्धि को दिशा दिखा रहा है। मुझे इस बात को दोहराने दें, क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है : आपकी बुद्धि की मात्रा से ज़्यादा महत्वपूर्ण है वह चिंतन या वह नज़रिया जो आपकी बुद्धि को दिशा दिखा रहा है।

बुद्धि के बहानासाइटिस के इलाज के तीन तरीके़

*बुद्धि के बहानासाइटिस के इलाज के तीन आसान तरीके हैं :*

1. अपनी ख़ुद की बुद्धि को कभी कम न आँकें और दूसरों की बुद्धि को कभी ज़रूरत से ज्यादा न आँकें। अपनी सेवाओं को सस्ते में न बेचें। अपने अच्छे बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें। अपने गुणों को खोजें। याद रखें, महत्व इस बात का नहीं है कि आपमें कितनी बुद्धि है। महत्व तो इस बात का है कि आप अपने दिमाग़ का किस तरह इस्तेमाल करते हैं। इस बात पर सिर न धुनें कि आपका आईक्यू कम है, बल्कि अपनी मानसिकता को सकारात्मक करें

2. अपने आपको बार–बार याद दिलाएँ, “मेरी बुद्धि से ज़्यादा महत्वपूर्ण है मेरा नज़रिया।” नौकरी पर और घर पर सकारात्मक नज़रिए का अभ्यास करें। काम टालने के तरीके़ खोजने के बजाय काम करने के तरीके़ खोजें। अपने आपमें “मैं जीत रहा हूँ” का रवैया विकसित करें। अपनी बुद्धि का रचनात्मक और सकारात्मक प्रयोग करें। अपनी बुद्धि का प्रयोग इस तरह करें कि आप जीत सकें। अपनी बुद्धि का दुरुपयोग अपनी असफलता के अच्छे बहाने खोजने में न करें।

3. याद रखें कि तथ्यों को रटने से ज़्यादा महत्चपूर्ण और बहुमूल्य है सोचने की योग्यता। अपने दिमाग़ को रचनात्मक बनाएँ और नए–नए विचार आने दें। काम करने के नए और बेहतर तरीके़ खोजते रहें। ख़ुद से पूछें, ”क्या मैं अपनी मानसिक क्षमता का उपयोग इतिहास रचने में कर रहा हूँ या इतिहास रटने में ?”

3.“कोई फ़ायदा नहीं। मेरी उम्र ज़्यादा (या कम) है।” उम्र का बहानासाइटिस असफलता की एक ऐसी बीमारी है जिसमें दोष उम्र के मत्थे मढ़ दिया जाता है। इसके दो आसानी से पहचाने जाने वाले रूप हैं। ‘मेरी उम्र ज़्यादा है‘ का रूप और ‘मेरी उम्र अभी बहुत कम है‘ का ब्रांड।

आपने हर उम्र के सैकड़ों लोगों को अपनी असफलताओं के बारे में इस तरह की बातें करते सुना होगा : “इस काम में सफल होने के लिए मेरी उम्र बहुत ज़्यादा (या बहुत कम) है। अपनी उम्र के कारण ही मैं वह नहीं कर सकता जो मैं करना चाहता हूँ या जो करने में मैं सक्षम हुँ।”

यह आश्चर्यजनक है परंतु बहुत कम लोग ऐसा महसूस करते हैं कि उनकी उम्र किसी काम के लिए “बिलकुल सही” है। इस बहाने ने हज़ारों लोगों के लिए सच्चे अवसर के दरवाज़े बंद कर दिए हैं। वे सोचते हैं कि उनकी उम्र ही गलत है, इसलिए वे कोशिश करने की ज़हमत भी नहीं उठाते।

उम्र के बहानासाइटिस का सबसे लोकप्रिय रूप है “मेरी उम्र ज़्यादा है।” यह बीमारी बहुत सूक्ष्म तरीके़ से फैलाई जाती है। टीवी के सीरियलों में दिखाया जाता है कि जब कंपनी के विलय के कारण किसी एक्ज़ीक्यूटिव की नौकरी छूट जाती है, तो वह बेरोज़गार हो जाता है। उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिल पाती, क्योंकि उसकी उम्र ज़्यादा हो चुकी है। मिस्टर एकज़ीक्यूटिव महीनों तक नौकरी की तलाश करते हैं, परंतु उन्हें नौकरी नहीं मिलती और इस दौरान वे कुछ समय तक आत्महत्या के विकल्प पर विचार करते हैं और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अब ख़ुद को रिटायर समझ लेने में ही समझदारी है।

“चालीस के बाद आपकी ज़िंदगी में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं,” यह विषय नाटकों और पत्रिकाओं के लेखों में लोकप्रिय है, इसलिए नहीं क्योंकि इसमें सच्चे तथ्य हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि बहाना ढूँढ़ने वाले बहुत से लोग इसी तरह के नाटक देखना चाहते हैं और इसी तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं।

*उम्र के बहानासाइटिस का इलाज क्या है*

उम्र के बहानासाइटिस का इलाज किया जा सकता है। कुछ साल पहले जब मैंने एक सेल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम का संचालन किया था, तो मैंने एक अच्छे सीरम की खोज की थी जो इस बीमारी का इलाज तो करता ही था, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता था कि यह बीमारी आपको कभी न हो।

इस प्रोग्राम में सेसिल नाम का एक प्रशिक्षु था। चालीस वर्षीय सेसिल निर्माता का प्रतिनिधि बनना चाहता था, परंतु सोचता था कि उसकी उम्र ज़्यादा हो चुकी है। उसने कहा, “मुझे शुरू से सब कुछ करना पड़ेगा। और अब मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? अब मैं चालीस बरस का हो गया हूँ ”

मैंने “ज़्यादा उम्र की समस्या” पर सेसिल के साथ कई बार बात की मैंने पुरानी दवा का इस्तेमाल किया, ‘ आपकी उम्र उतनी ही होती है, जितना आप समझते हैं।‘ परंतु मैंने पाया कि उसका मर्ज़ इस दवा से ठीक नहीं हो रहा है। (ज़्यादातर लोग इसके जवाब में कहते हैं, “परंतु मैं अपने आपको बूढ़ा समझता हूँ ! ” )

अंततः, मैंने एक ऐसा तरीक़ा खोज लिया जो जादू की तरह काम कर गया। एक दिन मैंने सेसिल से कहा, “सेसिल, मुझे यह बताओ कि किसी आदमी की रचनात्मक उम्र कब शुरू होती है?”

उसने एक–दो सेकड तक सोचने के बाद जवाब दिया, ”लगभग 20 साल की उम्र में।”

“अच्छा,” मैंने कहा, ”और अब मुझे यह बताओ कि किसी आदमी की रचनात्मक उम्र कब ख़त्म होती है?”

सेसिल ने जवाब दिया, “मुझे लगता है कि अगर वह तंदुरुस्त है और अपने काम को पसंद करता है तो कोई आदमी 70 साल की उम्र तक रचनात्मक कार्य कर सकता है।”

“ठीक है,” मैंने कहा, “बहुत से लोग 70 साल के बाद भी बहुत से रचनात्मक कार्य करते हैं, परंतु मैं आपसे सहमत हो जाता हूँ कि किसी आदमी के रचनात्मक कार्य करने की उम्र 20 से 70 साल के बीच होती है। और इस दौरान उसके पास 50 साल यानी कि आधी सदी होती है। सेसिल,” मैंने कहा, “आप अभी चालीस साल के हैं। आपकी रचनात्मक ज़िंदगी कितनी ख़त्म हो चुकी है ?”

“बीस साल,” उसने जवाब दिया।

“और आपकी रचनात्मक ज़िंदगी अभी कितनी बाक़ी है ?”

“तीस साल,” उसने जवाब दिया।

“दूसरे शब्दों में, सेसिल, आपने अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया । आपने अभी अपने रचनात्मक वर्षों का सिर्फ़ 40 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा किया है।”

मैंने सेसिल की तरफ़ देखा और यह महसूस किया कि यह बात उसके दिल को छू गई थी। उसकी उम्र का बहानासाइटिस तत्काल दूर हो गया। सेसिल ने देखा कि उसके सामने अभी बहुत से अवसरपूर्ण वर्ष मौजूद हैं। अभी तक वह सोचता था, “मैं तो अब बूढ़ा हो चला हूँ,” परंतु अब वह सोचने लगा, ”मैं अब भी युवा हूँ।” सेसिल ने अब महसूस किया कि हमारी उम्र कितनी है, इस बात का कोई ख़ास महत्व नहीं होता। दरअसल, उम्र के बारे में हमारा नज़रिया ही हमारे लिए वरदान या शाप बन जाता है।

उम्र के बहानासाइटिस का इलाज करने से आपके लिए अवसरों के वे बंद दरवाज़े खुल जाएँगे जिन पर इस बीमारी की वजह से ताला लगा हुआ था। मेरे एक रिश्तेदार ने अलग–अलग तरह के काम करने में अपने कई साल बर्बाद किए– जैसे सेल्समैनशिप, अपना बिज़नेस करना, बैंक में काम करना– परंतु वह यह तय नहीं कर पाया कि वह क्या करना चाहता था या उसे कौन सा काम पसंद था। आख़िरकार, वह इस नतीजे पर पहुँचा कि वह पादरी बनना चाहता था। परंतु जब उसने इस बारे में सोचा तो उसने पाया कि उसकी उम्र ज़्यादा हो चुकी है। अब वह 45 वर्ष का था, उसके तीन बच्चे थे और उसके पास पैसा भी ज़्यादा नहीं था।

परंतु सौभाग्य से उसने अपनी पूरी ताक़त जुटाई और ख़ुद से कहा, “चाहे मेरी उम्र पैंतालीस साल हो या पैंसठ साल, मैं पादरी बनकर दिखाऊँगा।”

उसके पास आस्था का भंडार था, और इसके सिवा कुछ नहीं था। उसने विस्कॉन्सन में 5 वर्षीय धर्मशास्त्र प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपना नाम लिखवा लिया। पाँच साल बाद वह पादरी बन गया और इलिनॉय के चर्च में अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब हुआ।

बूढ़ा ? बिलकुल नहीं। अभी तो उसके सामने 20 वर्ष की रचनात्मक ज़िंदगी बाक़ी थी। मैं इस आदमी से हाल ही में मिला था और उसने मुझे बताया, “अगर मैंने 45 वर्ष की उम्र में इतना बड़ा फैसला नहीं किया होता तो मेरी बाक़ी ज़िंदगी दु:ख भरी होती। जबकि अभी मैं अपने आपको उतना ही युवा समझता हूँ जितना कि मैं 25 वर्ष पहले था।”

और उसकी उम्र कम लग भी रही थी। जब आप उम्र के बहानासाइटिस को हरा देते हैं, तो इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि आपमें युवावस्था का आशावाद अा जाता है और आप युवा दिखने भी लगते हैं। जब आप उम्र की सीमाओं के अपने डर को जीत लेते हैं तो आप अपनी ज़िंदगी में कुछ साल तो जोड़ ही लेते हैं, अपनी सफलता में भी कुछ साल जोड़ लेते हैं।

यूनिवर्सिटी के मेरे एक पुराने सहयोगी ने मुझे ऐसा दिलचस्प तरीक़ा बताया जिससे उम्र के बहानासाइटिस को हराया जा सकता था। बिल ने हार्वर्ड से बीस के दशक में ग्रैजुएशन किया था। 24 साल तक स्टॉक ब्रोकर रहने के बाद बिल ने यह फैसला किया कि वह कॉलेज प्रोफ़ेसर बनेगा। बिल के दोस्तों ने उसे चेतावनी दी कि यह बहुत मेहनत का काम है और उससे इस उम्र में उतनी मेहनत नहीं होगी। परंतु बिल ने अपने लक्ष्य को हासिल करने का पक्का इरादा कर लिया था और उसने 51 वर्ष की उम्र में यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलिनॉय में दाख़िला लिया। 55 वर्ष की उम्र में उसे डिग्री मिली। आज बिल एक बढ़िया आर्टस कॉलेज में डिपार्टमेंट ऑफ़ इकॉनोमिक्स का चेयरमैन है। वह सुखी भी है। वह मुस्कराते हुए कहता है, ”अभी तो मेरी ज़िंदगी के एक तिहाई बेहतरीन साल बाक़ी हैं।”

*ज़्यादा उम्र का बहाना असफलता देने वाली बीमारी है। इसे हराएँ, वरना यह आपको हरा देगी।*

कोई आदमी ज्यादा छोटा कब होता है? “मेरी उम्र अभी बहुत कम है” भी उम्र के बहानासाइटिस का एक ऐसा प्रकार है जिसने कई लोगों का भविष्य चौपट कर दिया है। लगभग एक साल पहले जेरी नाम का 23 वर्षीय युवक मेरे पास एक समस्या लेकर आया। जेरी सर्विस में एक पैराट्रपर था और इसके बाद वह कॉलेज गया था। कॉलेज जाते–जाते भी जेरी ने अपने पत्नी और बच्चों की ख़ातिर एक बड़ी ट्रांसफ़र – एंड – स्टोरेज ककंपनी के लिए सेल्समैन का काम किया। उसने बहुत बेहतरीन काम किया। कॉलेज में भी और कंपनी में भी।

परंतु आज जेरी चिंतित था। डॉ. श्वार्टज़,” उसने कहा, “मेरी एक समस्या है। मेरी कंपनी ने मुझे सेल्स मैनेजर बनाने का फ़ैसला किया है। इससे मैं आठ सेल्समैनों का सुपरवाइज़र बन जाऊँगा।”

मैंने कहा, “बधाइयाँ, यह तो बहुत बढ़िया बात है। फिर तुम इतने परेशान क्यों दिख रहे हो ? ”

उसने जवाब दिया, “मुझे जिन आठ लोगों का सुपरवाइज़र बनाया गया है, वे सभी मुझसे सात साल से लेकर इक्कीस साल तक बड़े हैं। मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए? क्या मैं यह काम ठीक से कर सकता हूँ ?” “जेरी,” मैंने कहा, ”तुम्हारी कंपनी का जनरल मैनेजर तो यही समझता है कि तुम यह काम ठीक से कर पाओगे वरना वह तुम्हें सुपरवाइज़र बनाता ही क्यों। सिर्फ़ तीन बातें याद रखो और हर चीज़ ठीक हो जाएगी। पहली बात तो यह कि उम्र पर ध्यान ही मत दो। खेत में कोई बच्चा तभी आदमी माना जाता है जब वह यह साबित कर देता है कि वह आदमी के बराबर काम कर सकता है। उसकी उम्र से इसका कोई लेना–देना नहीं होता। और यही तुम्हें भी साबित करना होगा। जब तुम यह साबित कर दोगे कि तुम सेल्स मैनेजर के काम को अच्छी तरह से कर सकते हो, तो तुम अपने आप उतने बड़े हो जाओगे।

“दूसरी बात, अपने ‘प्रमोशन’ पर कभी इतराने की कोशिश मत करना। सेल्समैनों के प्रति सम्मान दिखाना। उनसे सलाह लेना। उन्हें यह महसूस कराना कि वे एक टीम के कप्तान के साथ काम कर रहे हैं, किसी तानाशाह के साथ नहीं। अगर तुम ऐसा करोगे, तो वे लोग तुम्हारे साथ काम करेंगे, न कि तुम्हारे विरुद्ध।

“तीसरी बात, इस बात की आदत डाल लो कि तुमसे ज़्यादा उम्र वाले लोग तुम्हारे अधीन काम करें। हर क्षेत्र का लीडर जल्दी ही यह जान लेता है कि उसकी उम्र अपने कई अधीनस्थों से कम है। इसलिए इस बात की आदत डाल लो। यह आगे आने वाले सालों में तुम्हारे काफ़ी काम आएगी, जब तुम्हें और भी बड़े अवसर मिलेंगे।

“और याद रखो, जेरी, तुम्हारी उम्र तुम्हारी सफलता की राह में कभी बाधा नहीं बनेगी, जब तक कि तुम ख़ुद उसे बाधा न बनाओ।”

आज जेरी का काम बढ़िया चल रहा है। उसे ट्रांसपोटेंशन बिज़नेस पसंद है और कुछ ही सालों में वह अपनी ख़ुद की कंपनी शुरू करने की योजना बना रहा है कम उम्र तभी बाधा बनती है, जब आप ख़ुद ऐसा सोचते हैं। आप अक्सर सुनते होंगे कि कई कामों में “काफ़ी” शारीरिक परिपक्वता की ज़रूरत होती है जैसे सिक्युरिटीज़ या बीमा बेचने में। किसी निवेशक का विश्वास जीतने के लिए या तो आपके बाल सफेद होने चाहिए या फिर आपके सिर पर बाल ही नहीं होने चाहिए– ऐसा सोचना सरासर मूर्खता है असली महत्च तो इस बात का है कि आप अपना काम कितनी अच्छी तरह से करते हैं। अगर आप अपने काम पर पकड़ रखते हैं, लोगों को समझते हैं तो आप पर्याप्त परिपक्व हैं। उम्र का योग्यता से कोई सीधा संबंध नहीं होता जब तक कि आप ख़ुद को यह यक़ीन न दिला दें कि उम्र और केवल उम्र ही आपको सफलता या असफलता दिला सकती है।

कई युवा लोग यह महसूस करते हैं कि वे अपनी कम उम्र के कारण ज़िंदगी की दौड़ में पीछे हैं। हो  सकता है कि किसी ऑफ़िस में कोई असुरक्षित आदमी या वह आदमी जिसे अपनी नौकरी छूटने का डर हो, आपके आगे बढ़ने की राह में रोड़े डाले। और हो सकता है कि वह आपकी उम्र का और आपके अनुभव की कमी का ज़िक्र भी करे।

परंतु आपको ऐसे असुरक्षित लोगों की बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। कंपनी के मालिक, कंपनी के मैनेजर ऐसा नहीं सोचेंगे। वे आपको उतनी ज़िम्मेदारी देंगे, जितनी कि आप निभा सकें। यह साबित करें कि आपमें योग्यता है, सकारात्मक रवैया है और आपकी कम उम्र एक लाभ के रूप में गिनी जाएगी।

*संक्षेप में, उम्र के बहानासाइटिस के इलाज यह हैं :*

1. अपनी वर्तमान उम्र के बारे में सकारात्मक सोच रखें। यह सोचें, “मैं अभी भी युवा हूँ;” यह न सोचें, “मैं अब बूढ़ा हो चुका हूँ।” नए लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश करते रहें। ऐसा करेंगे तो आपमें मानसिक उत्साह आ जाएगा और आप अधिक युवा भी दिखने लगेंगे।

2. हिसाब लगाएँ कि आपके पास कितना रचनात्मक समय बचा है। याद रखें, तीस साल के आदमी के पास अपने जीवन का 80 प्रतिशत रचनात्मक समय शेष है। और 50 साल के आदमी के पास अब भी 40 प्रतिशत समय है– शायद सर्वश्रेष्ठ समय तो अभी आना शेष है। ज़्यादातर लोग जितना सोचते हैं, ज़िंदगी दरअसल उससे लंबी होती है!

3. भविष्य में वह काम करें जो आप सचमुच करना चाहते हों। जब आप अपने दिमाग को नकारात्मक कर लेते हैं और सोचते हैं कि अब तो समय निकल चुका है, तभी आपके हाथ से समय सचमुच निकलता है। यह सोचना छोड़ दें, “मुझे यह काम सालों पहले शुरू कर देना चाहिए था।” यह असफलता की सोच है। इसके बजाय यह सोचें, “मैं अब शुरू करने जा रहा हूँ, मेरे सर्वश्रेष्ठ वर्ष अभी बाक़ी हैं।” सफल लोग इसी तरीके से सोचते हैं।

4. “परंतु मेरा मामला अलग है। मेरी तो किस्मत ही ख़राब है।” हाल ही में, मैंने सड़क दुर्घटनाओं के बारे में एक ट्रैफ़िक इंजीनियर की बातें सुनीं। उसका कहना था कि हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 40,000 लोग मर जाते हैं। उसकी चर्चा का मुख्य बिंदु यह था कि शायद ही कभी कोई सच्ची दुर्घटना होती हो। हम जिसे दुर्घटना मानते हैं, वह दरअसल किसी मानवीय या मशीनी गड़बड़ी का परिणाम होती है।

यह ट्रैफ़िक विशेषज्ञ जो बात कह रहा था, उसका मूल भाव दार्शनिक और चिंतक हमें सदियों से सिखाते आ रहे हैं ; हर चीज़ का कोई न कोई कारण होता है। कोई भी चीज़ बिना कारण के नहीं होती। आज बाहर जो मौसम है, वह भी दुर्घटनावश  नहीं है। वह किन्हीं विशेष कारणों से वैसा है। और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इंसान के मामले इस नियम का अपवाद हैं ।

परंतु शायद ही कोई दिन ऐसा गुज़रता हो जब हम किसी को अपनी “बदक़िस्मती” को दोष देते न सुनते हों। और वह दुर्लभ दिन ही होगा जब आप किसी दूसरे आदमी की सफलता के बारे में उसकी “अच्छी” क़िस्मत की दुहाई न सुनें।

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