कलम की चाहत
तुम्हारी कलम हर पल आगे बढ़ना चाहती है,
वह चीख -चीख कर बोलती है,
मैं सृजन का बीज हूं,
निर्माण का प्रतीक हूं,
विचार का स्वरूप हूं,
यू मुझे पेन होल्डर में रख देना उचित नहीं,
अगर तुमने मेरी इस मंशा को समझा नहीं,
तो तुम्हारी जीत मुमकिन नहीं।
निरंतरता मुझ में ही बसती है,
ढहराव मुझे पसंद नहीं।
मैं निर्भय हूं,
भय का मुझ में अंश नहीं।
मैं स्वतंत्र लिखावट करती हूं,
पर तंत्र बेड़ियों को तोड़ा है।
गुलामी से मुझको नफरत है,
आजादी से नाता जोड़ा है।
इतिहास गवाह है मेरी ताकत का,
ना जाने कितने तख्तों को मैंने पलटे हैं
जिसने मेरा मूल समझा है
इतिहास उसीने रचा है
नेहरू गांधी सुभाष भगत यह सब मेरे बच्चे हैं
मुझे अपने हाथों में थाम कर इतिहास इन्होंने रचे हैं।
मकबूल रजा हुसैन पिकासो ने मुझको जाना है,
रंग पन्नों में भर भर कर इस जहां को रंगो में रंग डाला है।
मेरा किसी से बैर नहीं,
कोई मेरा गैर नहीं।
जिसने मुझ को अपनाया,
दुगना उसको मैंने चाहा है।
सीख नई सिखलाती हूं,
आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाती हूं।
धन दौलत रिश्ते नाते यह सब तो आते जाते है।
मेरा हाथ पकड़ लो, जो जीवन भर साथ निभाते हैं।
Subhash….